युगेंद्र पवार का वोटिंग मशीनों के निरीक्षण से हटना: क्या है पूरा सच?
एनसीपी नेता के फैसले ने राजनीतिक गलियारों में मचाया है हलचल
एनसीपी नेता का चौंकाने वाला फैसला
बारामती विधानसभा क्षेत्र से एनसीपी नेता युगेंद्र पवार ने वोटिंग मशीनों के निरीक्षण से हटने का फैसला लिया है। यह फैसला तब आया है जब उनकी पार्टी प्रमुख शरद पवार ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की है। इस फैसले से राजनीतिक पंडित हैरान हैं और कई सवाल उठ रहे हैं।
पवार ने जिला निर्वाचन शाखा को एक आवेदन देकर निरीक्षण प्रक्रिया से हटने की जानकारी दी। यह कदम पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के रुख के बिल्कुल विपरीत है, जिन्होंने ईवीएम जांच की मांग जारी रखी है। इस विसंगति ने कई तरह की अटकलें पैदा कर दी हैं।
पृष्ठभूमि और घटनाक्रम
हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी के 11 उम्मीदवारों ने वोटिंग मशीनों की जांच की मांग की थी। इनमें एनसीपी के 8 और कांग्रेस के 3 उम्मीदवार शामिल थे। इन उम्मीदवारों ने जांच के लिए आवश्यक शुल्क, 64 लाख 66 हजार 400 रुपये जमा भी कर दिए थे। प्रक्रिया के अनुसार, कुल मतदान केंद्रों के 5% वोटिंग मशीनों का सत्यापन होना था।
एनसीपी के उम्मीदवारों में अशोक पवार (शिरूर), प्रशांत जगताप (हडपसर), राहुल कलाटे (चिंचवड़), सचिन दोडके (खडकवासला), अश्विनी कदम (पार्वती), अजीत गवने (भोसरी) और रमेश थोरात (दौंड) शामिल थे। कांग्रेस की ओर से रमेश बागवे (पुणे छावनी), संजय जगताप (पुरंदर), और संग्राम थोपटे (भोर) ने भी जांच की मांग की थी।
विश्लेषकों की प्रतिक्रिया
राजनीतिक विश्लेषक युगेंद्र पवार के फैसले को लेकर कई मत रखते हैं। कुछ इसे पार्टी की स्थिति को कमजोर करने वाला कदम मानते हैं, तो कुछ इसे रणनीतिक कदम बताते हैं। हालाँकि, इस पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। यह फैसला पार्टी की आंतरिक राजनीति को भी दर्शाता है,
एक विश्लेषक ने कहा।
वोटिंग मशीन विवाद लंबे समय से चल रहा है, और पारदर्शिता की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। उम्मीदवारों को मतगणना के तुरंत बाद आपत्ति दर्ज करने का अधिकार है, और 45 दिनों तक ईवीएम डेटा सुरक्षित रखा जाता है। यह अवधि 6 जनवरी को समाप्त हो रही है।
विशेषज्ञों के विचार
विशेषज्ञों का मानना है कि युगेंद्र पवार का यह फैसला एनसीपी के आंदोलन को नुकसान पहुंचा सकता है। विपक्ष इस कदम को एनसीपी की कमजोरी के रूप में देख सकता है। यह एक ऐसा कदम है जिससे पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं,
एक चुनाव विशेषज्ञ ने कहा। उन्होंने आगे कहा कि, पारदर्शिता महत्वपूर्ण है और इस फैसले से उस पर सवालिया निशान लगता है।
युगेंद्र पवार के इस अप्रत्याशित कदम के पीछे के कारणों पर अभी भी संशय बना हुआ है। यह फैसला राजनीतिक और कानूनी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। आगे आने वाले दिनों में इस मामले में और भी खुलासे हो सकते हैं।
निष्कर्ष
युगेंद्र पवार का यह फैसला कई सवालों को जन्म देता है और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। क्या यह एक रणनीतिक कदम है या पार्टी के भीतर की खींचतान का परिणाम? समय ही बताएगा कि इस घटना के पीछे का सच क्या है। यह मामला निश्चित रूप से आने वाले दिनों में भी चर्चा में बना रहेगा।