डॉ. बाबा आढव का लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु उपवास आंदोलन जारी
पुणे: वरिष्ठ समाजसेवी और श्रमिक नेता डॉ. बाबा आढव ने मौजूदा चुनावी प्रक्रिया में धनबल के अत्यधिक प्रयोग और लोकतांत्रिक मूल्यों के ह्रास के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू कर दी है। उन्होंने महात्मा फुले की पुण्यतिथि के अवसर पर इस विरोध का आरंभ किया। 94 वर्षीय डॉ. आढव ने संविधान दिवस पर इस आंदोलन की घोषणा की थी और 30 नवंबर तक इसे जारी रखने का संकल्प लिया है।
लोकतंत्र में धनबल का प्रभाव:
डॉ. आढव का कहना है कि उन्होंने 1952 से अब तक हर चुनाव देखा है, लेकिन वर्तमान चुनावों में धन वितरण ने सभी सीमाएं पार कर दी हैं। "आज आम आदमी चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकता। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और इसका विरोध जरूरी है," उन्होंने कहा।
समर्थन और अपील:
डॉ. आढव के आंदोलन को व्यापक समर्थन मिल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता नितिन पवार और गोरख सांगे भी उनके साथ भूख हड़ताल पर बैठे हैं। गुरुवार सुबह पूर्व मंत्री और समता परिषद के नेता छगन भुजबल ने उनसे मुलाकात की और स्वास्थ्य का ध्यान रखने की अपील की। इसके अलावा, विधायक रोहित पवार, कांग्रेस नेता एड. अभय छाजेड़, और अन्य अधिकारियों ने उनसे मुलाकात कर आंदोलन समाप्त करने का आग्रह किया।
आंदोलन की स्थिरता:
डॉ. आढव ने सभी अपीलों को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए कहा कि वे जीवन भर मूल्यों के लिए लड़ते रहे हैं और इस उम्र में भी पीछे नहीं हटेंगे। उनका कहना है कि "मुझे कुछ नहीं होगा। यह आंदोलन 30 नवंबर तक जारी रहेगा।"
चिंताएं:
डॉ. आढव की उम्र को देखते हुए उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। उनके अनुयायी और समर्थक उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की अपील कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
डॉ. आढव का यह आंदोलन मौजूदा चुनावी प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। उनके समर्थन में जुट रही भीड़ यह दिखाती है कि जनता में लोकतंत्र को धनबल से मुक्त करने की गहरी आकांक्षा है। 30 नवंबर तक आंदोलन की स्थिति पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी।