पुणे चुनाव: स्वास्थ्य सेवाएं बनीं प्रमुख मुद्दा, "जो पुणेकर के स्वास्थ्य का भार उठाएगा, वही विधायक होगा"

पुणे शहर के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों में प्रमुख मुद्दा बन गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और बढ़ती आबादी ने शहर की चिकित्सा व्यवस्था को प्रभावित किया है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। मतदाताओं का स्पष्ट संदेश है: "जो पुणेकर के स्वास्थ्य का भार उठाएगा, वही विधायक होगा।"

पुणे में स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियां

पुणे, देश के सबसे तेजी से विकसित होते शहरों में से एक, रोजगार और शिक्षा के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां आने वाले लोगों की बड़ी संख्या ने शहर की आबादी को 35 लाख से अधिक कर दिया है, जो बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव डाल रहा है। पेयजल, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग बढ़ने के साथ, शहर की स्वास्थ्य सेवाओं का मुकाबला करने में कठिनाइयां आ रही हैं।

बजट वृद्धि के बावजूद अधूरे सुधार

पुणे नगर निगम ने स्वास्थ्य विभाग के लिए बजट में वृद्धि की है, जिसे 2023-24 में 505 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2024-25 में 516.05 करोड़ रुपये कर दिया गया है। हालांकि, स्वास्थ्य शोधकर्ता विनोद शेंडे का मानना है कि यह वृद्धि अपर्याप्त है। शेंडे ने कहा कि नए अस्पतालों के निर्माण, निजी भागीदारी को समाप्त करने और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त एवं गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देने की आवश्यकता है।

सुधार और सुझाव

पुणे के नागरिकों ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई सुझाव दिए हैं:

  • स्वास्थ्य कर्मचारियों की नियुक्ति: सभी नगर निगम स्वास्थ्य सुविधाओं में रिक्त पदों को भरना, संविदा कर्मचारियों को नियमित करना और सभी स्थानों पर सुबह और शाम की ओपीडी सेवाओं को प्रारंभ करना।
  • सुविधाओं का विस्तार: शहर में आईसीयू और एनआईसीयू जैसी सुविधाओं को बढ़ावा देना और सभी स्थानों पर मुफ्त प्रयोगशाला एवं सोनोग्राफी सेवाएं उपलब्ध कराना।
  • सफाई और जल आपूर्ति: स्वच्छ जल की उपलब्धता और सार्वजनिक स्वच्छता सेवाओं में सुधार।
  • निजी-सरकारी भागीदारी: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही बढ़ाने के लिए जनभागीदारी को शामिल कर जन-आधारित निगरानी को लागू करना।

स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही

पुणे के नागरिकों का मानना है कि सभी निजी अस्पतालों में "रोगी अधिकार चार्टर" और मरीजों की शिकायतों के समाधान के लिए टोल-फ्री नंबर की व्यवस्था अनिवार्य की जाए। इसके अलावा, 'शिकायत निवारण कक्ष' की स्थापना से स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ सकती है।

निष्कर्ष

पुणे में चुनावों के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा चर्चा का केंद्र बना हुआ है। मतदाताओं की उम्मीद है कि आने वाले विधायक स्वास्थ्य क्षेत्र की उपेक्षा नहीं करेंगे और पुणेकरों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करेंगे।

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