पिंपरी के आधे मतदाता अच्छी सरकार की उम्मीद में नहीं देते वोट!
पिंपरी-चिंचवड़ में मतदान प्रति उदासीनता का प्रभाव
महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवड़ शहर में, विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। आंकड़े बताते हैं कि यहाँ के आधे से भी कम मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं, जबकि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत काफी ज़्यादा है।
पिंपरी-चिंचवड़ में मतदान प्रतिशत हमेशा ही 61 प्रतिशत से ऊपर नहीं गया है, जबकि आसपास की मावल जैसी सीटों पर यह आंकड़ा 70 प्रतिशत से ज़्यादा रहा है। 2014 में भोसरी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे ज़्यादा 60.92 प्रतिशत मतदान हुआ, लेकिन पिंपरी और चिंचवड़ में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से भी कम रहा।
पिंपरी में मतदान का औसत 50 प्रतिशत
पिंपरी, शहर का सबसे छोटा निर्वाचन क्षेत्र है, जहाँ मतदान का प्रतिशत सबसे कम है। 2019 के विधानसभा चुनाव में पिंपरी में केवल 50.21 प्रतिशत वोटिंग हुई। इसका मतलब है कि आधे से अधिक मतदाता वोट नहीं देते। हालांकि, हर चुनाव में पिंपरी में मतदान प्रतिशत थोड़ा बढ़ता ज़रूर दिखता है।
चिंचवड़ में 56 प्रतिशत मतदान
चिंचवड़, जिले का सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है, लेकिन यहां भी 2014 के आम चुनाव में अधिकतम 56.30 प्रतिशत ही मतदान हुआ। 2023 के उपचुनाव में, जहां विधायक लक्ष्मण जगताप का निधन हुआ था, वोटिंग का प्रतिशत केवल 50 फीसदी रहा। यह रुझान बताता है कि मतदाताओं की संख्या बढ़ने के बावजूद वोटिंग प्रतिशत में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है।
भोसरी में 60 प्रतिशत तक मतदान
भोसरी में 2014 में 60.92 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो पिंपरी-चिंचवड़ की सीटों में सर्वाधिक है। हालांकि, 2019 में यह आंकड़ा 59.71 प्रतिशत पर गिर गया। लेकिन, इन वर्षों में भोसरी में मतदाताओं की जागरूकता में वृद्धि देखने को मिली है।
मावल में अधिक जागरूकता
शहर से सटे मावल विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्र होने के बावजूद मतदाता अधिक जागरूक हैं। 2009 में भी यहां 65.41 प्रतिशत मतदान हुआ था और 2014 व 2019 में यह आंकड़ा 71 प्रतिशत से अधिक रहा।
निष्कर्ष: मतदान प्रति उदासीनता का प्रभाव कैसा?
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि पिंपरी-चिंचवड़ के शहरी मतदाता मतदान के प्रति उदासीन हैं। जहां मावल जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में 70 प्रतिशत से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं, वहीं पिंपरी-चिंचवड़ में 60 प्रतिशत का आंकड़ा भी पार नहीं हो पाया है। इसका असर प्रतिनिधि चुनने और बेहतर सरकार की उम्मीद पर पड़ता है।
यह उदासीनता एक चिंता का विषय है क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। अगर मतदाता अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो उन्हें अपनी सरकार चुनने का अधिकार कैसे मिलेगा? चुनावों में भागीदारी बढ़ाने के लिए, लोगों को जागरूक करने और उन्हें मतदान के महत्व को समझाने की ज़रूरत है।